जब plastic नही था तो क्या था ?
Plastic नही था तो जीवन कैसा था ?
हमारे समंदर , नदियाँ ,जलप्रपात पहले कैसे थे ?
वर्तमान काल में हमारे सागर , दरिया और झरने दूषित क्यों हो रहे हैं ?
ऐसा आपने न जाने कितनी बार सोचा होगा । लेकिन क्या अस्सी के दशक में या नब्बै के दशक में जन्में बच्चे सोच सकते हैं कि वर्तमान काल में जो पर्यावरण की स्थिति है वो पहले कैसी रही होगी ?
ये बदलाव आखिर आया कैसे , क्या इस पर हम वाकई में बहुत गंभीरता से सोच रहे हैं ?
अगर सोच रहे हैं तो क्या इसके लिए कुछ कर रहे हैं ?
आइए मिलकर केवल वार्तालाप या वाद-विवाद न करें ।
कुछ येगदान करें और अपनी धरती को फिर से सुंदर और संवारने का काम करने की पहल क्यों न करें !
मैं अभी हाल ही में दक्षिण भारत के एक बहुत आकर्षक और लुभावने समुद्र तट पर समय बिताने गई थी । अपने देश की धरती की सुंदरता देख मैं मंत्रमुग्ध हो गई । सागर किनारे बालू में , लहरों के साथ पैर भिगोते हुए सैर करने का सपना लिए सुबह का इंतज़ार था ।
सुहानी भोर
लहरों की आवाज़ से मैं पाँच बजे उठकर बालकनी में आई तो देखा कि
मेरे Resort से लगभग दस क़दम पर सागर लहरा रहा था । मैं तुरंत नीचे भागी , जैसे किसी अपने से बहुत समय बाद मिलना हो रहा हो !
Beach पर टहलती रही और लहरों से खेलती रही ।
राक्षस !
थोड़ी देर में मैंने देखा कि एक बड़ी लहर के साथ ही मनो प्लास्टिक की बोतलें , थैलियाँ और न जाने क्या-क्या बह कर किनारे फैल गया ।
ऐसा लगा जैसे प्लास्टिक रूपी राक्षस ने सारे तट को घेर लिया हो । ये वही चीज़ें थीं जो हम आए दिन अपनी ज़िंदगी में इस्तेमाल करते हैं । समुद्र की इस दुर्दशा पर मन बहुत दुखी हो रहा था ।
लेकिन एकदम से विचार आया कि साफ़ करती हूँ । मैं अंदर से तीन-चार garbage bags ले आई ।
श्रमदान
मैंने कचरा थैलियों में भर कर सफ़ाई शुरू कर दी । थोड़ी देर में Resort workers भी शामिल हो गए ।
आस-पास के Resorts में जाकर उनसे बात की कि आप सफ़ाई करवाएँ । उनका कहना था कि सागर में लोग बिना सोचे समझे कचरा फैंकते रहते हैं लेकिन वो अपने पास कुछ नही रखता सब वापस दे देता है ।
मेरे कहने पर कि वो बेचारा हमारे अत्याचार सह रहा है , उसे बचाना तो होगा ही । उन्होंने मेरा साथ दिया और Beach , चमक रहा था ।
बापू ( महात्मा गाँधी) कहते थे कि श्रमदान करना चाहिए । उस दिन मैं थकी तो ज़रूर लेकिन अपने श्रमदान से बहुत संतुष्टि मिल रही थी ।
विचार
अब सोचने का वक्त नही है श्रमदान का समय है । इससे पहले प्लास्टिक जैसे राक्षस पर रोक लगा कर उसे नष्ट करने की राह निकालने का कार्य करना आवश्यक है ।
वरना हमारे जीव जन्तु जैसे कछुए , मछलियाँ आदि की जाति समाप्त हो जाएगी और हमारी आने वाली पीढ़ी इनके बारे में केवल कहानियाँ ही सुनेंगी ।