खोलो द्वार अपने मन के , जो हम हमेशा बंद रखते हैं ना जोने किस डर से !
अकेले बंद कमरे में , साँसें घुट जाती हैं ,
खिड़की , दरवाज़े खोलो तो हवा भीतर आती है ,
बाहर निकलो तो लोगों की शक्लें पहचानी जाती हैं ,
गले मिलो तो उनकी धड़कनें सुनाई आती हैं ,
कुछ क़दम चलो तो ज़िंदगी की नई शक्ल नज़र आती है ,
किसी का हाथ थामों तो मुस्कान में , तन्हाई दिख जाती है,
ज़रा साथ समय गुज़ारो तो हर इंसान में कहानी मिल जाती है,
साथ चल कर देखो , कहीं राम , कहीं कृष्ण , शिव और राम
तो कहीं दुर्गा और सीता के अनेक रूपों में जूझती नारी मिल जाती है ,
तभी नवरात्रि , दशहरा और दीवाली मन जाती है ,
ज़रा बंद घरों के कपाट तो खोलो,एक नई दुनिया मिल जाती है ।