ऐ दिल तू क्यों अपनों में भी बेगाना सा फिरता है ,
क्यों कोई तेरा पहचाना सा नही लगता है ,
तू धड़कता तो है पर अनजाना सा धड़कता है ,
ऐ दिल तू क्यों अपनों में भी बेगाना सा फिरता है ।
सब अपनी ही धुन में चलते हैं ,
अपने सपनों में डूबे रहते हैं ,
तू उनकी धुन का तार नही बन पाता है ,
उन सपनों में अपने को नही तू पाता है ,
ऐ दिल तू क्यों अपनों में भी बेगाना सा फिरता है ।
उन आँखों में क्यों खोया सा कुछ लगता है ,
हर पेशानी पर धुंधला सा पसीना दिखता है ,
क्यों उन आँखों में फिर मुलाक़ात नही दिखती है ,
क्यों उस पेशानी पर सुकूँ का रंग नही आता है ,
ऐ दिल तू क्यों अपनों में भी बेगाना सा फिरता है ।
बहार है , रंग है , हर चेहरा फिर बेरंगा सा क्यों लगता है ,
भाग रहा वो झोंके से बस , मन खोया सा लगता है ,
लहरों पर बस नाव रखी है , पतवारों को भूल गया है ,
डूबेगा या पार करेगा , इसी फेर में लगा हुआ है ,
ऐ दिल तू क्यों अपनों में भी बेगाना सा फिरता है ।
बहुत खूब 🙂
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Thanks dear .
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Thank you so much .
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शुभ जन्माष्टमी
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आपको भी जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं ।
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