बुल्लेशा गल ताईंयों मुकदी , जद “मैं” नूँ दिलों मुकाईये………
हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में एक गाँव है कलोल । इस दूर दराज़ गाँव में बेटियों के लिए जो मुहीम चलाई जा रही है वो देखकर मैं नतमस्तक हो गई , उन लोगों के प्रति जिन्होंने इसे शुरू किया । मन चाहा कि इसे आप सब तक पहुँचाऊँ , शायद देश के किसी कोने में किसी ज़रूरतमंद बेटी के लिए हम भी कुछ कर सकें।
आज से तीन साल पहले कर्नल यशवंत सिंह चंदेल ने जब अपनी जवान बेटी मंजुषा को बीमारी में खोया तो दोनों पति – पत्नी टूट गए । इस दुख ने उन्हें गहरा घाव दिया था । खेत के हर पत्ते और बाग़ के हर फूल में मंजुषा का चेहरा दिखता था । जीवन बोझ लगने लगा था । गाँव में अपने आस – पास कई बेटियाँ या मंजुषा की सखियाँ दिखतीं तो उसकी याद और गहरा जाती । तभी उनके दिल में विचार आया , हर बेटी में अपनी बेटी देखने का और इस तरह शुरू हुआ “मंजुषा सहायता केंद्र” । उन्होंने अपनी पेंशन और अपने दूसरे बच्चों की सहायता से ज़रूरतमंद लड़कियों को आर्थिक सहायता देकर पढ़ाने का काम शुरू किया । इन तीन वर्षो में वे गाँव – गाँव घूमकर ऐसे परिवार को ढूँढते हैं जिनके बेटी है लेकिन आर्थिक अभाव के कारण स्कूल नही जा रहीं । वे उन्हें स्कूल में दाख़िला दिलवाकर उनकी पूरी शिक्षा की ज़िम्मेदारी ले लेते हैं । अभावों में रह रहे ऐसे परिवार जिन्होंने एक या दो बेटियों के बाद कोई और संतान नही की उन्हें सम्मानित कर आर्थिक सहायता पहुँचाते हैं । एक परिवार की ऐसी बच्ची जो न सुन सकती थी और न बोल सकती थी को उन्होंने कई साल पढाया , नौकरी लगवाई और फिर शादी करवाई । आज वो सुखी पारीवारिक जीवन न्यतीत कर रही है ।
कर्नल साहब कुछ ग़रीब प्रतिभाशाली लड़कों की भी परवरिश कर रहे हैं । यही नही पति – पत्नी गाँव के लोगों की हर प्रकार से सहायता करते रहते हैं । कोई भी गाँव का व्यक्ति आर्थिक अभाव के कारण इलाज के बिना न रहे , उसकी जान ना जाए इस बात का वो पूरा ध्यान रखते हैं । ख़ुद आज के इस “और मिल जाए” के युग में दोनों पति-पत्नी सादगी भरा जीवन व्यतीत करते हैं । कबीर , नानक और बुल्लेशा के प्रशंसक हैं , उन्हीं को अपना पथप्रदर्शक मानते हैं ।
“ एक म्हाको फूल प्यारो , अधखिलो कुम्हला गयो ।
सोग बीतो , हरख छायो , फूल बाग लगा गयो ।“
Inspirational ♥️
LikeLiked by 1 person
Thanks for reading .
LikeLiked by 1 person
ये वनस्थली विद्यापीठ की आत्मा है पूज्य आपाजी की लिखी कविता है और आपकी ये कहानी भी विद्यापीठ और आपाजी के जीवन के वृतांत से हूबहू मिल रही। बहुत अच्छा लिखा है आपने।ऐसा लग रहा है विद्यापीठ से आपका भी जुड़ाव है
LikeLike
आपका धन्यवाद , आप का बी बनस्थली से नाता है लगता है । 🥰🥰
LikeLiked by 1 person
जी बनस्थली से ही सब कुछ मिला , आज जो हूँ , बनस्थली की देन है । मेरी परवरिश की है बनस्थली ने ।
LikeLike