कुछ खोया सा है ,
मन कुछ ढूँढ रहा है ,
आँखों में कुछ इंतज़ार सा है ,
धड़कनें क्यूँ बेहिसाब सी हैं ?
यूँही भटक जाना ,
सब कुछ भूल जाना चाहता है दिल ।
किसी को कुछ समझाना ,
कुछ बतलाना ,
कुछ भी तो नही चाहता है ये मन !
फिर भी क्या खोया और क्या ढूँढ रहा है ये मन ?
चल छोड़ , चल दे यूँही , कहीं भी ,
किसी अंजान की मुस्कान बन ,
किसी बेनाम की आँखों में तैरते आँसू को ऊँगली पर उतार ले ,
कुछ उलझते दिलों को सुलझा दे ।
पाया-खोया का हिसाब छोड़ ,
अपनी धड़कनों को विराम दे ।